Saturday, August 30, 2014

भगवान से बड़ा भक्त!

साईं की मूर्तियां मंदिरों से हटाईं जाएं। शंकराचार्य का ये फरमान मुझे कुछ पच नहीं रहा। संयोग से तीज की पूजा के लिए पत्नी के साथ मैं भी अपने सोसाइटी के बगल के मंदिर में गया। पत्नी पूजा रही और मैं मंदिर के एक पुजारी को मथने में लगा रहा। हमारे अपार्टमेंट के ठीक बगल का जो मंदिर है उसमें कई भगवानों की मूर्तियां हैं। मंदिर के अंदर भगवान शिव और बाहर के चबूतरे पर हनुमान जी। और उस चबूतरे से आगे दाहिनी तरफ शनिदेव का भी चबूतरा है। और मंदिर के बाहर की तरफ निकलते हुए आगे सफेद संगमरमर की सीढ़ियों से चढ़ते हुए सामने साईं बाबा भी विराजमान हैं। मैं जितनी देर रहा। देखा तो बहुतायत नौजवान जोड़े साईं बाबा से आशीर्वाद जरूर ले रहे थे। मैंने पुजारी जी से पूछा। क्या साईं बाबा की मूर्ति हटा रहे हैं। शंकराचार्य का फरमान आप तक पहुंचा कि नहीं। उन्होंने कहा मुझे तो नहीं आया। आपको आया क्या। मैंने कहा साईं भगवान हैं कि नहीं। जवाब में उन्होंने ढेर सारे सवाल दाग दिए। कहां से हैं। वहां कौन से भगवान थे। वहां साईं बाबा भगवान थे क्या। फिर गोल-गोल दर्शन पर उतर आए। हम-आप सामने खड़े हैं फिर भी एक दूसरे को समझते हैं। नहीं ना। तो फिर जो सामने ही नहीं है। उसको कैसे समझेंगे। फिर सवाल जिंदगी भर पानी पीने को नहीं दिया। मारकर भगा दिया। मर गए तो भगवान बना दिया। ऐसे होता है क्या। ऐसी ही ढेर सारी दार्शनिक बातों के बाद फिर बोले अब साईं बाबा भगवान तो नहीं ही हैं। संत हैं।

फिर मैंने सवाल पूछा कि मूर्ति हटाएंगे। मैंने कहा वैसे किस मूर्ति पर ज्यादा चढ़ावा आता है। कौन सी मूर्ति किसने लगवाई। इस बार जवाब सारे सवालों का जवाब था। बोले चढ़ावा तो सब पर ही आता है। और सारे भगवान भक्तों के ही तो हैं। जो भक्त जो मूर्ति लगवा देता है। वही लग जाती है। सब किसी न किसी ने दी ही है। और भगवान भक्त से बड़े थोड़े न होते हैं। भक्त हैं तो ही भगवान हैं। अब शंकराचार्य को समझ में आए न आए। मुझे जवाब मिल गया था।


Friday, August 29, 2014

यादव सरकार!

 पंडित, ठाकुर, गुर्जर, जाट या फिर जैसे मैं हर्षवर्धन त्रिपाठी हूं तो, गाड़ी पर त्रिपाठी। ये सब लिखने का काम हमेशा होता रहता है। जाति की श्रेष्ठता या फिर जाति की दबंगई दिखाने-बताने की शायद इच्छा रहती होगी। लेकिन, इस समय उत्तर प्रदेश में एक ही जाति है जिसके साथ सत्ता समीकरण काम करता है। जाति वही जिसके नाम पर मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार संसद, विधानसभा में है। जो नहीं है धीरे-धीरे पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। ये स्थिति गजब है। एक दिन मैंने ऐसे ही सोचा और हफ्ते भर में कोशिश करके कुछ कारों के पीछे सत्ताधारी लोगों की जाति की तस्वीर उतार ली। ये नोएडा में दफ्तर आते-जाते की कुछ तस्वीरें हैं। एक दिन तो कमाल ये हुआ कि एक के पीछे एक 5 कारें चल रही थीं। और सब पर यादव लिखा हुआ था। उसमें भी एक टैक्सी की सूमो भी थी। शायद टैक्सी वाले को पुलिस वाले की बेवजह वसूली से निजात मिल जाती होगी। 

 टाटा सफारी वैसे ही दबंगई की थोड़ी बहुत निशानी हो ही जाती है। कम से कम उत्तर प्रदेश और बिहार में तो ऐसा ही है। लेकिन, इसके बाद भी इस सरकार में इन साहब को यादव लिखाना ज्यादा सुरक्षित और श्रेष्ठता का प्रतीक लगा।

ये सबसे कमाल का मिलान आज सुबह दफ्तर आते समय देखने को मिला। पुलिस-प्रशासन से ताकतवर भला कौन होता है। ढेर सारी ऐसी कारें मिल जाएंगी जिस पर प्रेस के साथ पुलिस का भी स्टीकर लगा मिल जाता है। कभी-कभी तो बार काउंसिल का भी। लेकिन, ये अद्भुत है कि पुलिस के साथ भी यादव लिखाना इन्हें ज्यादा बेहतर लगा। ये यादव जाति लिखने-लिखाने का मसला नहीं है। सोचिए कि जिस प्रदेश के लोग सिर्फ सत्ता की जाति का प्रदर्शन करके खुद को सुरक्षित और ताकतवर मानते हैं। उस प्रदेश का क्या होगा। दुर्भाग्य कि उसी उत्तर प्रदेश का मैं भी हूं।

Wednesday, August 27, 2014

अदालत का फैसला हमेशा रुका क्यों रहता है?

ये अदालत भी जाने कब आंख पर बंधी पट्टी खोलेगी। दागियों को मंत्री नहीं बनाओ। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को ये नसीहत देने के बजाए अगर ये साफ-साफ बताती कि भारतीय कानून के तहत देश की केंद्रीय सरकार में ये लोग और राज्य सरकारों में ये लोग अभी तक दागी हैं। इनके ऊपर जो मामले चल रहे हैं उस लिहाज से इन्हें मंत्री क्या, संतरी भी नहीं होना चाहिए। तब अदालत के फैसले का कोई मतलब निकलता। वरना तो दागी मंत्री नहीं बनें ये तो कौन नहीं कहता। अदालत ने क्या अलग किया। कोई कानून का जानकार बताएगा मुझे।

स्त्री-पुरुष!

स्त्री, पुरुष बराबरी की बात करते हम कितने आगे चले आए हैं। और हुआ क्या है। अंदाजा लगाइए #KBC में @SrBachchan ने सवाल पूछा कि अर्जुन पुरस्कार पाने वाली पहली महिला क्रिकेटर कौन है। मिताली राज और अंजलि जैन का नाम मैं जानता था लेकिन, मेरी पैदाइश के साल में ही अर्जुन पुरस्कार पा चुकी महिला क्रिकेटर को इस देश में कितने लोग जानते होंगे। इसी से अंदाजा लग जाता है कि महिलाओं का अच्छा क्रिकेटर होना भी उस देश में किसी को याद नहीं जिस देश में चिरकुट पुरुष क्रिकेटर करो़ड़ो के विज्ञापन लूट लेता है। कमाल ये है कि 1976 में अर्जुन पुरस्कार पाने वाली शांता रंगास्वामी के बारे में गूगल अंकल भी बमुश्किल बता पाते हैं।

Friday, August 22, 2014

दुनिया की सबसे कमजोर कौम है आतंकवादी

ये तस्वीर इस समय चर्चा में है। एक अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले को ISIS आतंकवादियों ने मारा और उसी वीडियो की एक तस्वीर है ये। पत्रकार के भगवा कपड़े पर भी सवाल खड़ा होता है। मेरा सवाल बड़ा दूसरा है। ये वीडियो दुनिया को डराने के लिए है। लेकिन, ये डराने वाला कितना डरा हुआ है। इसका अंदाजा लगाइए। निहत्था, हाथ बंधा हुआ, जिसका मरना तय है। उसके सामने भी शकल दिखाने की हिम्मत नहीं। वीडियो दुनिया को डराने के लिए और खुद इतना डरा कि जाने कौन से वीराने में भी डर रहा है शकल दिखाने से। ये दुनिया की सबसे डरपोक कौम है जो खुद की सेना बनाती है, आतंकवादी बनती है। ये गली, मोहल्ले के लंपटों से भी कमजोर लोग हैं। बेवजह जेहादी यानी जो मौत से भी नहीं डरता, इस तरह से प्रचारित करके आतंकवादियों को सबसे मजबूत दिल साबित कर दिया गया है। लेकिन, सच्चाई इसके ठीक उलट लगती है। आतंकवादी वो लोग हैं जो सबसे डरपोक हैं। दबे, छिपे, चुपके से लोगों को मारते हैं और खुद को बहुत हिम्मती साबित करने की कोशिश करते हैं। ये थके हारे लोग हैं। 

Thursday, August 21, 2014

रणछोड़ कांग्रेसी


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी शैली है और उस शैली में जाकर उनसे निपटने की कांग्रेस तैयारी नहीं कर पा रही है तो, अपने मुख्यमंत्रियों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से दूर रखने की बात कर रही है। इससे क्या होगा। होगा ये कि हर कांग्रेसी शासन वाले राज्य में भी सिर्फ मोदी होंगे। तस्वीरों में कांग्रेसी मुख्यमंत्री नहीं होंगे। और क्या होगा। होगा ये कि जो कांग्रेस के कार्यकर्ता किसी तरह थोड़ा आगे बढ़कर क्रिया-प्रतिक्रिया वाले सिद्धांत के तहत बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ तैयार होते, वो भी नहीं होंगे। और सबसे बड़ी बात लोकतांत्रिक परंपराओं को तोड़ने का काम हमेशा की तरह कांग्रेस कर रही होगी। बीजेपी को राज करना नहीं आता ये तो कहकर कांग्रेस ने लंबे समय तक राज कर लिया। बनी-बनाई बीजेपी सरकारें भी विपक्षी कांग्रेसी नेताओं से इस दहशत में पांच साल तक किसी तरह सरकार चलाती रहीं और पांच साल बाद कांग्रेसियों को सत्ता सौंप दी। लेकिन, अब ये होता नहीं दिख रहा है। देश के ढेर सारे राज्य हैं जहां पांच क्या 10-15 साल से भाजपाई सत्ता चला रहे हैं। और कांग्रेसियों से डर भी नहीं रहे हैं। अब उसी के आगे ये हो गया है कि सत्ता में रहते कांग्रेसी मुख्यमंत्री, भाजपाई प्रधानमंत्री के मंच पर जाने से डर रहे हैं। और प्रचारित भी कर रहे हैं कि जनता उनकी "हूटिंग" कर रही है। इसके लिए वो प्रधानमंत्री को दोषी ठहरा रहे हैं। भाजपाई मजा ले रहे हैं कि जनता के उत्साह का क्या किया जाए। कांग्रेस देश के डीएनए से इस तरह से गायब हो जाएगा। ये आशंका खाए-पिए-अघाए, कार्यकर्ता को सिर्फ कमाने की जुगाड़ सिखाने वाले कांग्रेसियों को थी ही नहीं। मोदी शैली वाली राजनीति से निपटना है तो, उसी शैली में बात कीजिए। और जैसे एक समय तय ये सत्य था कि भाजपाइयों को शासन करना नहीं आता। वैसे ही मोदी के सामने ये भी साबित हो रहा है कि कांग्रेसियों को शासन में रहते हुए शासक की तरह व्यवहार करना नहीं सूझ रहा। लोकतंत्र में जनता ही तय करती है कि शासक का व्यवहार कौन करेगा। मुख्यमंत्री रहते मोदी को देश की जनता ने प्रधानमंत्री सा रुतबा दिया। फिर प्रधानमंत्री भी बना दिया। और कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं कि अपने ही राज्य में, अपनी जनता के सामने मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए हैं।

Tuesday, August 19, 2014

खेत खत्म, बाजार बमबम

रेडियो पर विज्ञापन सुनते दफ्तर आया जिसमें पत्नी चिंतित है कि खाने का पूरा ध्यान रखने के बाद भी पति चैतन्य नहीं रहता। सलाह मिलती है कि रोज के खाने से शरीर की सारी जरूरतें पूरी नहीं होतीं। प्रोटीन के लिए ये उत्पाद खाओ। और अगर ध्यान से दूसरे विज्ञापनों को देखें तो वो बताता है कि शुद्ध गेहूं या दूसरी रोज की खाने की चीजें इसमें मिली हैं, इसलिए खाओ। ये बाजार चाहता क्या है। खेत से पैदा अनाज छोड़, अनाज को इधर-उधर करके कारखाने में बने, पैक डिब्बाबंद उत्पादन को खाया जाए। कमाल है ना। लेकिन, बाजार ऐसे ही काम करता है। वो चाहता है कि खेत बने रहें लेकिन, सिर्फ उसकी जरूरत भर के। सिर्फ उसके कारखानों में नए उत्पाद बनाने भर के। किसान भी बचे रहें उतने ही।

Saturday, August 16, 2014

1947 के बाद वाले प्रधानमंत्री का 15 अगस्त


ये किसी को उम्मीद नहीं रही होगी। दरअसल ये परंपरा भी नहीं रही है। इसीलिए कोई भी ये सोच नहीं रहा था। राष्ट्रीय अखबार, टीवी चैनल लंबे समय से ये कयास लगा रहे थे कि ढेर सारी नई योजनाओं का एलान लाल किले की प्राचीर से होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की छवि को बेहतर करने के लिए 15 अगस्त का इंतजार कर रहे हैं और सारी योजनाओं को 15 अगस्त पर ही लागू करके देश के लोगों का मन जीतने की योजना बना चुके हैं। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई भी बड़ा एलान 15 अगस्त को नहीं किया। बड़े एलान की बात करें तो एक बड़ा एलान हुआ कि योजना आयोग की जगह कोई नया आयोग बनेगा। हालांकि, उसका भी जिक्र एक-दो लाइनों में हुआ। उसकी भी असल रूपरेखा अभी जनता के सामने आना बाकी है। हां, ये जरूर पता चल गया है कि ये नया आयोग संभवत: राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग या इसी तरह का कुछ होगा। और साथ ही ये आयोग योजना आयोग की तरह पंचवर्षीय सरकारी योजनाओं से आगे जाएगा । आगे किस तरह जाएगा वो होता ये दिख रहा है कि इसमें निजी कंपनियों के लिए भी कुछ प्रस्तावित रूपरेखा तैयार होगी। राज्यों के काम करने के तरीके भी ये आयोग कुछ-कुछ तय करेगा। उम्मीद ये भी है कि नया आयोग पुराने आयोग की तरह सिर्फ इस मद में इतना खर्च वाली भूमिका में भी नहीं रहेगा। उम्मीद ये भी कि नया आयोग अगले 02-30-50 सालों की योजना भी बनाएगा और उसके पूरा होने की एक निश्चित समयसीमा भी तय करेगा। हालांकि, ये सारे मेरे निजी अनुमान हैं। तो फिर अगर ये भी लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नहीं बोला तो आखिर करीब 65 मिनट तक यानी एक घंटे से भी ज्यादा समय तक वो क्या बोलते रहे।

तीन दशक बाद भारत का प्रधानमंत्री बुलेटप्रूफ के शीशे के पीछे नहीं था। प्रधानमंत्री ने जन गण मन के साथ वंदेमातरम् को भी वही सम्मान दिया। प्रधानमंत्री मशीनी भाषण नहीं पढ़ रहे थे। प्रधानमंत्री किसी खास ड्रेस कोड से बंधे नहीं दिखे। लेकिन, क्या यही सब एक प्रधानमंत्री से हम उम्मीद कर रहे थे। वो भी ऐसे प्रधानमंत्री से जनभावनाओं के ज्वार पर सवार होकर लाल किले की प्राचीर पर पहुंचा है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को अच्छे से समझते हैं। इसीलिए नरेंद्र मोदी अभी भी जनता क्या सोचती है, किस परेशानी में रहती है। सिर्फ उसी की बात की। मेरी नजर में लंबे अर्से बाद देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो देश के लोगों का नैतिक बल बढ़ाने का काम सफलतापूर्वक कर रहा है। पिछले दस सालों में मनमोहन सिंह की अगुवाई में देश हर साल 15 अगस्त पर ग्लोबल इकोनॉमी, रिकवरी, ग्रोथ, दस प्रतिशत, FDI, FII, मार्केट, मंदी, इनक्लूसिव ग्रोथ सुन-सुनकर थक, पक चुका था। डॉक्टर मनमोहन सिंह अर्थशास्त्र के विद्वान रहे हैं। वित्त मंत्री रहे हैं। उससे पहले योजना आयोग, रिजर्व बैंक की अगुवाई कर चुके हैं। विश्व बैंक में भी रहे। दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों में रहे। देश को दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार का सपना भी दिखाया। हर 15 अगस्त पर भारी-भारी पढ़ा हुआ भाषणा पढ़ा भी। इस बात को नरेंद्र मोदी अच्छे से समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने वो बात कही जिसकी वजह से भारत के लोगों का मनोबल हर रोज टूट रहा है। अमेरिका, चीन, जापान के नागरिकों का नैतिक, मनोबल इतना ऊंचा होता है कि कई काम वहां की सरकारें इसी से कर ले जाती हैं। यही नैतिक, मनोबल ऊंचा करने की कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को की है। इसीलिए इस 15 अगस्त 1947 के बाद जन्मे प्रधानमंत्री ने ऐसी बातें लाल किले से कीं जो, हर रोज की मुश्किल हैं। और उन्हें ठीक करना लोगों के ही वश की बात है, किसी सरकार या प्रधानमंत्री के नहीं। लेकिन, प्रधानमंत्री या सरकार कैसे काम करती हैं इससे जनता ठीक काम करेगी या नहीं करेगी ये जरूर तय होता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि राष्ट्रीय अखबारों, टीवी चैनलों में खबर चल रही है कि सरकारी कर्मचारी, अधिकारी समय से आने लगे हैं। लेकिन, मेरे लिए गर्व की बात नहीं हो सकती। ये शर्म की बात है कि हम इतने नीचे गिर चुके हैं कि हमारे देश में समय पर सरकारी कर्मचारियों का आना राष्ट्रीय खबर है। सोचिए कि हम हमारे देश में ही किस तरह हमारे अनुशासन हीन होने का मजाक बनाते हैं। कोई समय पर आया तो कभी सुनने में नहीं आता कि ये भारतीय समय पर आया। समय पर आया भारतीय, भारत में ही कहता है कि मैं तो ब्रिटिश टाइम का पाबंद हूं। ये देश का दुर्भाग्य नहीं हो तो और क्या है कि हम देर से आने पर कहते हैं कि अरे इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का मतलब इतना देर तो होता ही है। इससे ज्यादा नैतिक पतन किसी देश का क्या हो सकता है। इसी नैतिक पतन को रोक लिया जाए तो सब ठीच हो जाए। फिर सवाल ये है कि इस नैतिक पतन को रोकने की कोशिश देश के किसी प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं की। मैं बताता हूं क्यों नहीं की। इसके पहले के कितने प्रधानमंत्री खुद सुबह समय पर और नियमित तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय आते थे। अब मुझे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के समय का तो पता नहीं। हां, उसके बाद के सारे प्रधानमंत्री काम भले करते रहे हों लेकिन, उनके जीवन में अनुशासन कितना था। वो सब जानते हैं। नरेंद्र मोदी अगर खुद समय से दफ्तर आ रहे हैं तो जाहिर हैं सारे देश के लोगों को समय की पाबंदी बताने का हक उन्हें मिलता है। सरकारी कर्मचारी को जो अहंकार भाव होता है। उसे भी प्रधानमंत्री ने साफ किया। नरेंद्र मोदी ने सरकारी कर्मचारियों को देश का सेवक बताया। और कहाकि यही राष्ट्रीय चरित्र बनाने की जरूरत है। और शायद इसी को स्थापित करने के लिए नरेंद्र मोदी ने खुद को प्रधानमंत्री की जगह प्रधान सेवक के रूप में पेश किया। ऐसा नहीं है कि ये कोई नई बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे थे। सच्चाई यही है कि विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री सब जनता के प्रतिनिधि, सेवक ही होते हैं। लेकिन, धीरे-धीरे ये बात सबके दिमाग से हटती गई। और शायद इसीलिए इस बेहद पुरानी और स्थापित बात को भी नए सिरे से बताने, समझाने की जरूरत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पड़ी।

Come Make In India ये भी नया है। Made In India से आगे की ये बात है। इसे हो सकता है विरोधी विदेशी कंपनियों के लिए आसान शर्तों पर दरवाजे खोलने से जोड़कर देखें। लेकिन, सच्चाई यही है कि दुनिया सामाजिक, राजनीतिक नजरिये को अपने अर्थशास्त्र से बदल देने वाले चीन ने यही तो किया है। फिनलैंड की कंपनी नोकिया भी अपनी असेंबलिंग चीन में ही कराती है। फायदा किसको हुआ। चीन को, चीन की तरक्की हुई। मिसाल बन गई। जब-जब रुपये की कमजोरी होती है तो हम भारतीय कहते हैं कि हमारी सरकार Import Driven Policy के बजाए Export Driven Policy क्यों नहीं बना पाती है। प्रधानमंत्री की 15 अगस्त की अपील उसी दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम है। अगर हम एक-एक करके धीरे-धीरे ही सही आयात किए जाने वाले उत्पादों को खुद तैयार करने लगें तो खुद ही धीरे-धीरे निर्यात करने की भी स्थिति में भी आएंगे। Zero Defect Zero Effect भी इसी सोच को दिखाता है। गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने और पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाली नीति। इन सबके लिए कुछ सिर्फ अर्थशास्त्रियों या बाजार के जानकारों की ही समझ में आने वाले शब्दों के इस्तेमाल की जरूरत भी मोदी को नहीं पड़ी। ये जनता के प्रधानमंत्री वाली बात साबित करता है। लड़कियों के साथ किसी भी तरह के गलत व्यवहार, भ्रूण हत्या से लेकर बलात्कार तक, पर किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह से लाल किले से बात क्यों नहीं की। क्या लाल किला गंभीर भाषण की जगह होती है। आजादी के दिन का प्रधानमंत्री का भाषण है तो वो बताए कि कौन सी समस्याएं हैं और देश को उससे आजादी कैसे मिल सकती है। वो नरेंद्र मोदी ने किया। बताया कि माता-पिताजी, लड़कियों को टोंकते हो, पहले लड़कों को टोंको। सब ठीक हो जाएगा। 15 अगस्त 1947 के बाद पैदा हुए प्रधानमंत्री की ये नजर थी। और उसी नजरिये से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को देखना, दिखाना चाहते हैं। बेहतर कोशिश है, सफल हुई तो देश बेहतर होगा। 

Wednesday, August 06, 2014

दुखी राहुल गांधी

राहुल गांधी ने आज लोकसभा में गजब किया। गजब इसलिए कि वो आज ऐसा जागे कि सीधे लोकसभा में अध्यक्ष के सामने की खाली जगह पर अपनी कुर्सी छोड़कर पहुंच गए। वो दुखी थे कि धर्म परिवर्तन पर बहस नहीं कराई जा रही है। इतने गुस्से और दुख में आम आदमी क्या करेगा। और आम आदमी क्या खास आदमी भी क्या करेगा। लोकतंत्र के चौथे खंभे की मदद लेगा। राहुल गांधी ने भी ली। और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन पर ढेर सारे आरोप लगा दिए। आरोप राहुल सुमित्रा महाजन पर लगा रहे थे लेकिन, उनके आरोप के निशाने पर नरेंद्र मोदी ही रहे।

राहुल गांधी आज दुखी हैं। गुस्से में हैं। कह रहे हैं कि इस देश में किसी की सुनी नहीं जा रही। सिर्फ एक आदमी की चल रही है। राहुल गांधी जब गुस्से में हैं, दुखी हैं तो मैं सुखी हूं, हंस रहा हूं। मजा आ रहा है कि लोकतंत्र को मजाक बना देने वाले परिवार का राजकुमार ऐसे दुखी है। दरअसल उसके मन की नहीं हो रही है। वरना तो वो प्रधानमंत्री के भी लिखे-पढ़े को फाड़ देता था। बेहूदा कह देता था। इस प्रधानमंत्री के सामने सचमुच कुछ चल नहीं रहा है। अब तो ये नौटंकी बंद करो राहुल गांधी। नरेंद्र मोदी तानाशाह होंगे तो देखा जाएगा। अभी तो एक परिवार की तानाशाही गई है। जनता उसके जश्न में हैं। हम भी।

Tuesday, August 05, 2014

मैकाले की बौद्धिक संतान

मैकाले को गाली देते देते हम कब मन के काले हो गए पता ही नहीं लगा। लड़ाई ही गलत हो रही है। IAS में C-SAT रहे या खत्म हो। क्या यही लड़ाई है। ये लड़ाई आगे बढ़े। @narendramodi की सरकार पर ये दबाव बने कि हर बात हिंदी में करने का अधिकार भारत में नहीं मिलेगा तो कहां मिलेगा। अच्छा है मौके से बात शुरू हो गई है। अदालत से अधिकारी क्लर्क बनने तक हिन्दी, भारतीय भाषाओं को मौका मिले। बताइए क्या अंग्रेजी वालों का डर है कि शरद यादव जैसे लोग भी कह रहे हैं कोई अंग्रेजी के खिलाफ नहीं है। कमाल है बरसों से अंग्रेजी ने हिन्दी को खिलाफ खड़े होने लायक नहीं छोड़ा और अवसर आया लड़ाई का तो बात ये कि हिन्दी या भारतीय भाषाएं अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हैं। बिल्कुल खिलाफ हैं। कम से कम कम वहां तक तो पक्का ही जहां तक हिन्दी या दूसरी भारतीय भाषाओं का हक अंग्रेजी मार रही है। जोर से बोलो हम हिंदुस्तान में अंग्रेजी के सरकारी उपयोग के खिलाफ हैं। निजी जीवन में मैं भी चाहता हूं ज्यादा से ज्यादा भाषा सीख सकूं। सब सीखें। सब अपना भाषा ज्ञान बघारें। कौन मना करता है।

Saturday, August 02, 2014

हिन्दी को अपमानित करने वाले ये कौन लोग हैं?

C-SAT पर क्या जबर्दस्त राजनीति हो रही है। देखिए इसे। दिल्ली में इसके विरोध की तस्वीरें तो सब देख ही रहे हैं। इलाहाबाद में भी जमकर इसका विरोध हो रहा है। सिर्फ आईएएस नहीं पीसीएस की परीक्षा में भी उसी पैटर्न को हटाने के लिए ये विरोध हो रहा है। केंद्र में बीजेपी की सरकार है। उसी विचारधारा वाले छात्र संगठन ABVP के छात्रों ने इसके विरोध में आमरण अनशन शुरू कर दिया है। समाजवादी छात्रसभा के कुछ बच्चे सड़क पर इसके विरोध में झाड़ू लगा रहे हैं जबकि, प्रदेश में इन्हीं की पार्टी की सरकार है। वामपंथी आइसा भी इसके विरोध में जुलूस निकाल रहा है। प्रतियोगी छात्र प्रवेश पत्र जला रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो दक्षिणपंथी, वामपंथी, समाजवादी सबको इस पर एतराज है। फिर वो कौन लोग हैं जो इतने ताकतवर हैं कि इन सब पर हावी हैं। कौन हैं जो पूर्ण बहुमत वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ऊपर फैसले ले रहे हैं। दरअसल ये गुलाम परस्त मानसिकता से लड़ाई है। ये मामला सिर्फ सीसैट का नहीं है। देखिए प्री परीक्षा के बाद ये लड़ाई चलती है। या फिर छात्रों के अपना भविष्य सुरक्षित रखने तक ही ये हिन्दी वाली चिंता चलती है। अंग्रेजी वाले नियमित और योजनाबद्ध तरीके से खुद को स्थापित करने का और दसरों पर राज करने की योजना बनाते, चलाते रहते हैं। जबकि, हिन्दी वाले जब उनके स्वार्थ पूरे नहीं होते दिखते हैं। तब मैदान में उतरते हैं। तो, जाहिर है अंग्रेजी वाले फिर हिन्दी वालों को मैदान से मकान तक पहुंचाने वाला लॉलीपॉप फैसला दिलाकर चुप करा देते हैं। लड़ाई गुलामी वाले पूरे तंत्र से है। सिर् आईएएस या पीसीएस बनने तक ये लड़ाई नहीं है। लेकिन, इतना तो जरूर है कि अगर आईएएस और पीसीएस तक भी हिन्दी वाले पहुंचने बंद हो गए तो शायद इस तंत्र से लड़ना नामुमकिन हो जाएगा। हिन्दी के नाम पर गर्व आने वाली पीढ़ी कैसे कर पाएगी। कोई रमारमण किसी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में मुख्य अतिथि नहीं बनेगा। और बना भी तो बच्चों को हिन्दी के लिए प्रेरित नहीं कर पाएगा। 

Friday, August 01, 2014

लड़का-लड़की

वो औसत सा ही लड़का था। आंखों पर चश्मा। पिट्ठू बैग और दो मोबाइल। एक वही जिससे बात करनी थी। मतलब वो फोन सिर्फ बात करने के काम आता था। दूसरा स्मार्टफोन जो, यारों-दोस्तों से यारी-दोस्ती बनाए रखने में मददगार होता है। यानी स्मार्टली बात करने में दूसरा वाला फोन मददगार था। मंडी हाउस स्टेशन पर मेट्रो में वो तेजी से घुसा। उसके साथ एक लड़की भी थी। लड़की थोड़ी मोटी थी। दोनों में अच्छी दोस्ती लग रही थी। उस औसत से लड़के का चेहरा पता नहीं किस गर्व भाव से भरा हुआ था। और लड़की के चेहरे पर आसक्ति भाव था। मेट्रो ने रफ्तार पकड़ी और गिरने से बचने के लिए लड़की ने लड़के का हाथ पकड़ लिया। फिर लड़की ने बोला अरे सॉरी। लड़के ने बेतकल्लुफी से लड़की का हाथ छूते हुए कहा। अरे इसमें क्या है गिरोगी तो पकड़ लिया। इसमें गलत क्या है। फिर खुद ही उसने चर्चा छेड़ दी। अब उसने उस दिन पकड़ लिया था। लेकिन, उसने नाखूनों से पकड़ लिया था। मुझे चोट आ गई थी। लड़की बोली अरे तुम उसके ब्वॉयफ्रेंड जो हो। पता नहीं पूछ रही थी या बता रही थी। लड़के को जैसे अपनी सारी प्रतिभा दिखाने के लिए इसी मौके का इंतजार था। उसके तमतमाते चेहरे से लगा जैसे किसी ने जख्म पर मिर्ची डाल दी हो। लड़का बोला थू करता है उसके जैसों पर मैं। मैं तो उसके जैसों को जूते की नोक पर रखता हूं। लड़की के चेहरे पर अभी भी आसक्ति भाव बरकरार था। वो लड़की को चमत्कृत कर देना चाहता था। और शायद इससे बेहतर मौका लड़के को दोबारा न मिलता। वो बोलता रहा। वो तो किसी लायक नहीं थी। मेरे आगे पीछे तो एक से एक लड़कियां घूमती रहती हैं। अचानक बात करने वाला साधारण वाला मोबाइल लड़के ने जेब में डाल लिया। और उतनी ही तेजी से स्मार्टफोन जेब से निकाला। जेब से स्मार्टफोन निकालकर व्हॉट्सएप में जल्दी जल्दी कुछ खोजने लगा। खोजकर एक सुंदर लड़की की तस्वीर निकाली। उस मोटी अपेक्षाकृत कम सुंदर अपने साथ वाली लड़की को वो तस्वीर दिखाई। अभी-अभी इसे छोड़ा है मैंने। फिर थोड़ा संतुलित हुआ। छोड़ा नहीं ये कह लो म्यूचुअल ब्रेकअप है। देख इसे कित्ती सुंदर है ये। और दिखाता हूं तुझे। वो ऐसे दूसरी तस्वीर खोजकर दिखा रहा था। जैसे कोई अपनी धन संपदा, हथियार या फिर शारीरिक बल दिखाता है। दूसरी तस्वीर दिखाकर उसने कहा। इससे पहले वाली ये है। थोड़ा गर्व के साथ चेहरा तमतमाते हुए उसने कहा कि ऐसी ढेरों लड़कियां मेरे आगे पीछे रही हैं। मुझे उम्मीद थी कि लड़की कुछ तो प्रतिवाद करेगी। कहीं तो बोलेगी कि लड़कियां भी तुमको जूते की नोक पर रखेंगी। कहीं तो कहेगी कि बहुत बोल चुके तुम। लेकिन, उस लड़की के चेहरे पर आसक्ति भाव बरकरार था। वही आसक्ति भाव लिए लड़की सेक्टर 15 पर लड़की उतर गई। 

हिन्दी की राजनीति और राजनीति की हिन्दी


समाजवादी पार्टी और उसकी उत्तर प्रदेश सरकार कुछ इस तरह से खुद को पेश कर रही है जैसे हिन्दी वाले छात्रों के लिए वो बड़ी चिंतित है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को यूपीएससी के सीसैट पर चिट्ठी लिखी। उधर, बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यूपीपीसीएस के पैटर्न पर चिट्ठी लिखकर यूपीपीसीएस की परीक्षा रोकने को कहा है। यूपीएससी ने 2010 में आईएएस के लिए सीसैट लागू किया। वही पैटर्न उत्तर प्रदेश ने पीसीएस के लिए लागू कर दिया। छात्रों को ये भी समझना होगा कि कौन कहां राजनीतिक रोटी सेंक रहा है।  दिल्ली में उत्तर प्रदेश-बिहार का हर पार्टी का सांसद हिन्दी के पक्ष में बात कर रहा है। राजनीतिक भविष्य के लिहाज से भी और सचमुच भी दुखी है छात्रों के उत्पीड़न से फिर भी कौन लोग हैं जो इतने ताकतवर है जो 120 सांसदों की इच्छा के ऊपर हावी हो जा रहे हैं।

और सिर्फ यूपी-बिहार ही क्यों? दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के भी सांसद क्या हिन्दी या भारतीय भाषाओं के विरोधी हो सकते हैं। जवाब कड़ाई से नहीं में है। फिर @narendramodi को ये फैसला लेने में किसी समिति की रिपोर्ट का इतने लंबे समय से इंतजार क्यों है। बीजेपी के एक सांसद ने कल मुझसे फिर कहाकि सीसैट पर अगले एक दो दिन में सुखद फैसला आ जाएगा। इससे पहले भी कुछेक सांसद मुझे ये भरोसा पंद्रह दिन पहले ही दे रहे थे। सवाल ये है कि जब सबकुछ इतना साफ है और हिन्दी या दूसरी भारतीय भाषाओं के छात्रों के साथ अन्याय हो रहा है ये सब जानते हैं तो, उसे सुधारने में इतना समय क्यों लग रहा है। हिन्दी में दुनिया को समझाने वाले @narendramodi अपने अधिकारियों की अंग्रेजी पर प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। पीएमओ में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ये बता चुके हैं कि रिपोर्ट भी आ चुकी है। हम जल्द ही इस पर फैसला लेंगे। सचमुच हिन्दी के लिए हिंदुस्तान में फैसला लेना बड़ा कठिन है।  #UPSC #CSAT


हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

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