Thursday, October 30, 2014

अच्छे दिन के पीछे कौन

सबकुछ ठीक रहा तो झारखंड, जम्मू कश्मीर चुनाव से पहले पेट्रोल-डीजल दोनों ही 2-3 रुपये लीटर सस्ता हो सकता है। वजह अंतर्राष्ट्रीय है। कच्चा तेल $85.14/बैरल हो गया है। रुपया भी डॉलर के मुकाबले लगभग स्थिर है। इससे मोदी सरकार के अच्छे दिन आ गए हैं। लेकिन, सच्चाई यही है कि इस समय कोई भी सरकार होती तो ये अच्छे दिन आते ही आते। तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन को गिरते कच्चे तेल के भाव से चिंता हो रही है। हो सकता है कि कीमतों को गिरने से रोकने के लिए वो कुछ उत्पादन घटाने जैसा कदम उठाएं। 27 नवंबर को OPEC देशों की होने वाली बैठक में इस पर फैसला लिया जा सकता है। साथ ही सर्दियां शुरू हो रही हैं। अमेरिका और दूसरे विकसित देशों में गैसोलीन की मांग तेजी से बढ़ेगी। हर तरह का कच्चा तेल महंगा हो सकता है। तब इस सरकार की असली परीक्षा होगी। तभी समझ में आएगा कि तेल नीति (मोटा-मोटा पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस जैसी कीमतें) के मामले में मोदी सरकार कितनी मजबूत है। और तभी ये भी तय होगा कि अच्छे दिन रह-रहकर आएंगे-जाएंगे या सचमुच आएंगे। खैर, सर्दियां बढ़ने तक सस्ते पेट्रोल-डीजल का मजा लीजिए।

Wednesday, October 29, 2014

काला धन वालों की खास सूची सिर्फ बतंगड़ पर!


बड़ी मुसीबत है। सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से कह दिया है कि वो काला धन वाली सूची हमें तो दे ही दो। हम उसको किसी को नहीं बताएंगे। अच्छा रहा कि सुप्रीमकोर्ट अभी ये नहीं कह रहा है कि देश के हर काला धन वाले की सूची हमें सौंपो या देश को सौंपो। फिर तो मामला एकदम गड़बड़ा जाएगा साहब। देश की सरकार को जनसंख्या जानने से भी बड़ी मुहिम चलानी पड़ जाएगी। सड़क पर बैठा मोची, सुबह दूध देने वाला, हमारा धोबी, हमारी गाड़ी साफ करने वाला, हमारा सब्जी वाला, हमारी काम वाली सब काले धन के खातेदार हैं। हालांकि, इन काले धन वालों में कितनों का खाता खुला होगा। भगवान जानता होगा या वो काले धन वाले खुद जानते होंगे। सोचिए हर रोज जो चाय नाश्ता हम-आप सड़क किनारे की दुकान पर करते हैं। कितने की रसीद लेते हैं। तो जाहिर बिना बिल का कोई भी भुगतान काला धन हो गया। अब भारतीय रुपये का नोट हरा हो, लाल हो या फिर और रंग का। लेकिन, कानूनी पैमाने पर तो एक झटके में हर नोट काला हुआ जाता है। सोचिए घर का खर्च चलाने का पैसा नहीं है ये सड़क पर बैठा मोची हर रोज कहता होगा। लेकिन, उसने कब कहा कि उसके पास भी काला धन है। अब सोचिए देश के हर काला धन वाले का हिसाब लगाना पड़ा तो मोदी सरकार के पांच साल तो इसी में बीत जाएंगे। सारा आधार, जनसंख्या रजिस्टर, बायोमीट्रिक सिस्टम सब गड़बड़ा जाएगा। 


अर कौन-कौन से तो विभाग हैं। बिना पंजीकरण के दुकान लगी तो उसके लिए जिम्मेदारी अधिकारी, कर्मचारी, विभाग भी काला धन का जिम्मेदार। नौकरी करने वाला पूरी ईमानदारी से टैक्स भरे लेकिन, काला धन में वो भी जिम्मेदार। चाय की दुकान सड़क किनारे लगी तो नगर निगम, प्राधिकरण का अधिकारी जिम्मेदार। और वो सेल्स टैक्स वाला जो हर कारोबारी का टिन नंबर जांचता है वो भी तो काला धन का जिम्मेदार। अमूल दूध की अरबों की कंपनी। लेकिन, दूध के आधा लीटर पैकेट का बिल नहीं दिया तो वो भी काला धन की जिम्मेदार। मतलब सफेद दूध की क्रांति करने वाली कंपनी भी जाने-अनजाने गजब काले धन की क्रांति में शामिल है। फिर सोचिए। देश का हर सरकारी विभाग क्या कर रहा होगा। सिर्फ एक काम। नोटिस जारी करना। सेल्स टैक्स विभाग के अधिकारी, कर्मचारी खड़ें होंगे सड़क किनारे की दुकानों पर एक दिन में कितना कमाया। इस कमाई के लिहाज से उस दुकान को कितना सेल्स टैक्स देना होगा। फिर वहीं खड़ा होगा इनकम टैक्स विभाग वाला। पूछेगा- इतना बेचा तो कितना कमाया। और इतना कमाया तो टैक्स कितने का दिया। टैक्स नहीं दिया तो क्यों नहीं दिया। और दिया तो कम क्यों दिया। मतलब काला धन बढ़ाया। सारे स्वच्छता अभियान, जनधन योजना, सीधे खाते में सब्सिडी की रकम -- सबके रंग इस काले धन वाली मुहिम के सामने उतर जाएंगे। वैसे भी काले रंग के आगे भला कौन सा रंग टिका है आजतक। 

किसी ने कहा तो भगवान श्रीकृष्ण के संदर्भ में होगा कि सब रंग कच्चा संवरिया रंग पक्का। ऐसे ही थोड़े न ब्लैक इज ब्यूटीफुल लिखी लाइनें खूब चलीं होगीं। लेकिन, काला दिखाने का प्रचलन द्वापरयुग के बाद खत्म सा हो गया। और ये तो घोर कलियुग है साहेब। इस कलियुग में तो काला रंग छिपाने के लिए ढेर सारी क्रीम मौजूद है। जब काला रंग छिपाने के लिए इतना इंतजाम हमारे कलियुग में है तो भला काला धन छिपाने के लिए क्यों न हो। काले धन को तो हम जबर्दस्ती काला कह रहे हैं। कम से कम भारत में तो किसी नोट का रंग काला नहीं है। फिर भी सुप्रीमकोर्ट ने कह दिया है तो नई-नई श्रेणियों में सुप्रीमकोर्ट में काला धन वालों के लिफाफे जाएंगे। छोटे काले धन वाले की सूची, मोटे काले धन वालों की सूची। सड़क किनारे काला धन वालों की सूची, म़ॉल के काला धन वालों की सूची। और बढ़िया होगा कि शहरों की भी काला धन सूची आए। और शहरों में मोहल्ले और फिर मोहल्ले में गलियों की काला धन सूची आए। देश के व्यवस्थित चंडीगढ़, नोएडा, गुड़गांव और ग्रेटर नोएडा जैसे व्यवस्थित शहरों से सेक्टरों की अलग-अलग काला धन सूची आ जाएगी। कितना मजा आएगा जब किसी अखबार की हेडलाइन होगी। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव ने काला धन के मामले में मुंबई के कफ परेड इलाके को पीछे छोड़ा। लग जाओ सरकार। इससे बड़ी मुहिम दुनिया में कहीं-कभी नहीं चली होगी। भारत विश्व का नेता बनने जा रहा है। नया उदाहरण पेश होगा। 

Wednesday, October 22, 2014

मित्रों, माफ करना मैं चाहकर भी देशभक्त नहीं रह सका!

हालांकि, ये कोई देशभक्ति का पक्का वाला पैमाना नहीं है। इसलिए भी कि अब दुनिया के काम करने का तरीका बदल गया है। दुनिया में सबकुछ ग्लोबल है, लोकल भी है। लेकिन, इस बार जब देश की राजनीति ऐसे बदली कि तीन दशक बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वो भी उस दल की जो, कई मायने में जबरदस्त अछूत है। तो इस पैमाने को फिर से तैयार किया गया। पता नहीं वो संदेश सचमुच नरेंद्र मोदी ने किसी को एक बार भी भेजा था या नहीं। लेकिन, लाखों बार ये संदेश एक दूसरे को भेजा गया। सोशल मीडिया के हर मंच पर भेजा गया। मेरे पास भी आया। संदेश कह रहा है कि इस दीपावली पर भारतीय, स्वदेशी सामानों का ही इस्तेमाल करना है। खासकर Made in China से बचने की सलाह है। वजह भी ये कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Make In India की बात कर रहे हैं। हालांकि, ये प्रधानमंत्री Make In India कहकर देसी उद्योगपतियों से ज्यादा विदेशी उद्योगपतियों का आह्वान कर रहे हैं। फिर भी हमने सोचा कि इस प्रधानमंत्री की ये बात सुनते हैं। इसलिए खुद के खरीदे अपने घर की पहली दीपावली के लिए रोशनी Make In India या Made In India उत्पाद से ही करने का इरादा बनाया। लेकिन, पूरे भारतीय बाजार में चीन से आई, चमकती रोशनी की लड़ियों के बीच में एक भी भारतीय लड़ी मुझे नहीं दिखी। हारकर ये लड़ी मैं ले आया। घर की बालकनी में लटका दी।

ये परेशानी पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी मेरे मन में कई बार स्वदेशी की बात आई। लेकिन, बार-बार ये अहसास हुआ कि ऐसा भावनात्मक प्रयास इस बाजार के समय में संभव नहीं है। क्योंकि, बाजार में जो सस्ता है, अच्छा है। वही बिकेगी, चलेगा। फिर चाहे चीन के पटाके, बिजली की लड़ियां हों या फिर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति। लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तो मुझे मिट्टी से बनी मिल गई। और मुझे लगता है कि कम से कम ये तो चीन से नहीं आई होगी। लेकिन, इस चीन के कारोबार में जो छिपी बात है। Make In India अभियान को सफल बनाने के लिए ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझ में ये बात होगी, मैं मानता हूं। 25 रुपये से 150 रुपये में एक बालकनी को चमकाने भर की बिजली की लड़ी अगर चीन से चलकर यहां आ पा रही है। तो ये सोचने-समझने-अनुकरण करने की बात है। भारत को इसी पर काम करना होगा। और ये ज्यादा जोर शोर, आक्रामक रणनीति के साथ इसलिए भी करना होगा कि नरेंद्र मोदी के  Make In India के खतरे को भांपते हुए शी जिनपिंग ने Made in China का नारा और बुलंद कर दिया है। शुभ दीपावली।

Tuesday, October 21, 2014

उम्मीद से होने से पहले सोचें!

महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर भाजपा के जो तीन नाम आ रहे हैं, उसे जानकार राजनीतिक, पीढ़ीगत बदलाव के तौर पर देख रहे हैं। मोदी-अमित शाह कुछ जादू करने के मूड में न हों तो, देवेंद्र फडणवीस, विनोद तावड़े और पंकजा मुडे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। विनोद तावड़े 50 से थोड़ा ही ऊपर हैं तो देवेंद्र 40 के ऊपर और पंकजा 40 के भी नीचे। देखने में ये राजनीति नौजवानों के हाथ में आ रही है। लेकिन, महाराष्ट्र समझने वालों के लिए एक छोड़ी सी जानकारी NCP (मोदी जी के मुताबिक नेचुरली करप्ट पार्टी) मुखिया शरद पवार 37 साल की उम्र में ही राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे। इसलिए उम्मीद से होने पहले सोचें, तब उम्मीद से हों तो बेहतर।

और अंत में

ये जो कुछ बड़का लोग हैं। जिन्होंने नरेंद्र मोदी के समर्थक को भक्त कहना शुरू किया या कहें पूरी तरह भक्त साबित कर दिया। उन लोगों का इस मोदी लहर में बड़ा योगदान है। अब भक्त होंगे तो भगवान के लिए कुछ भी कर गुजरेंगे। कर रहे हैं। भक्त श्रृंखला बन गई है।

जान मत दीजिए!

सबको शुभ धनतेरस, दीपावली। हिंदू धर्म इसीलिए मुझे भाता है कि यहां सब मस्त है, सब स्वस्थ है। तो जान मत दीजिए सोना-चांदी का सिक्का खरीदने के लिए। धनतेरस पर कुछ खरीदना शुभ है। इसमें सोना-चांदी कब शामिल हुआ, इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी दे सके तो बेहतर। मुझे लगता है कि इसके पीछे नीयत सिर्फ इतनी रही होगी कि घर में कुछ नया आए तो लोगों का मन खुश रहे और दूसरा ये कि कुछ खरीदेंगे ही। तो अपनी हैसियत के लिहाज से कारोबार, अर्थव्यवस्था बढ़ाने में मददगार रहेंगे। इसलिए जिनकी हैसियत है वो चांदी, सोना, हीरा कुछ भी खरीद लीजिए। बाकी अपनी जरूरत का सामान खरीदिए। चम्मच से लेकर कुकर तक। फिर से शुभ धनतेरस, दीपावली।


और अंत में
ये भारत में त्यौहार किसी बड़ी दैवीय साजिश का नतीजा लगते हैं। किसी भी हाल में न देश को दुखी रहने देते हैं, न देशवासियों को। इसीलिए हिंदुस्तान उत्सवधर्मी कहा जाता है। लीजिए फिर उत्सव के साथ धर्म लग गया। शुभ दीपावली।

Saturday, October 18, 2014

हिंदी में कुछ दिक्कत तो है!

ब्लॉग अड्डा की तरफ से एक मेल मेरे पास आया। इस मेल में लिखा है कि अगर आप इस प्रतियोगिता में शामिल होते हैं तो आपके INK Conference में नि:शुल्क प्रवेश मिलेगा। मुंबई में होने वाले इस कार्यक्रम के प्रवेश यानी Pass की कीमत 50 हजार रुपये बताई गई है। मुझे लगा मैं भी इसमें शामिल होता हूं। हालांकि, जिस तरह के लोग इसमें दिख रहे थे। उससे मेरी आशंका गहरा गई थी कि यहां भी हिंदी वाले अछूत ही होंगे। उनको प्रवेश नहीं मिलेगा। फिर भी मैंने हिम्मत करके ब्लॉगअड्डा के पन्ने पर जाकर ये सवाल पूछा कि क्या ये हिंदी ब्लॉगरों के लिए भी है। कई घंटे तक वो ब्लॉगअड्डा संचालकों की अनुमति का इंतजार करता रहा। फिर मेरा प्रश्न ही गायब हो गया। मतलब डिलीट कर दिया गया। वजह भी बड़ी साफ थी कि दो देशों के ब्लॉगरों को साथ मिलकर एक ब्लॉगपोस्ट तैयार करनी थी। और देश भले ही भदेस हिंदीभाषी को प्रधानमंत्री बना दे लेकिन, ये बाजार कहां मानने वाला है कि भारत में सिर्फ हिंदी में ब्लॉगिंग करने वाला विदेश के किसी ब्लॉगर से संवाद भी बना सकता है। इसलिए उन्होंने मेरे प्रश्न को डिलीट भी कर दिया कि उनका पन्ना हिंदी में लिखा बात से गंदा न दिखे।

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We want YOU to be a part of India's most premier event where the likes of Kunal Bahl (Co-founder & CEO, Snapdeal.com), Anupama Chopra (Film Critic, Author), Dr. Shriram Nene (Surgeon, Serial Entrepreneur), Neeraj Arora (Vice President, WhatsApp Inc.), Rajan Anandan (Managing Director, Google India), Shantanu Moitra (Music director, composer), Usha Uthup (The Voice), Vidhya Subramanian (Bharatanatyam Dancer) and many others are going to speak. An event only the best attend. Be among the best. A chance to win a pass to INK 2014. (Exclusive to the BlogAdda community)

ठीक है कि ये उनका विशेषाधिकार है। लेकिन, भाई फिर किसी हैसियत से ब्लॉगअड्डा ने हम हिंदी ब्लॉगरों को अपने साथ जोड़ा और ऊपर लिखी मेल मेरे इनबॉक्स में ठेल दी। इस सबको देखकर मैं ये समझ पा रहा हूं कि
कुछ दिक्कत तो है। मार्क जुकरबर्ग भारत आए और हिंदी ब्लॉगरों, पत्रकारों से दूर रहे। हिंदी ब्लॉगिंग का उत्साह अंग्रेजी ब्लॉगिंग से कई गुना आगे हैं। लेकिन, हिंदी ब्लॉगिंग के ज्यादातर मंच, संकलक कुछ ऐसा नहीं कर पाए, जिससे बाजार उनके पीछे चले। सभा, बहस तक ही मामला रहा। वो भी बड़ी मुश्किल से। अंग्रेजी में वही मंच, संकलक बड़ा आगे तक बढ़ गए। अंग्रेजी ब्लॉगरों के नाम लिखकर चिढ़ाती हुई मेल भी इनबॉक्स में आ जाती है कि फलां ब्लॉगर $1000 से ज्यादा महीने में कमा रहे हैं। हिंदी ब्लॉगर सभा, संगोष्ठी में फाइल, कलम बटोरकर आ जाएं। इत्ते में ही खुश। कुछ दिक्कत तो है। सुलझ सके तो सुलझाइए।

लाइफ इन अ मेट्रो!

मातृशक्ति

आमतौर पर ये धारणा है कि सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं के लिए बड़ी मुश्किल है। उन्हें दुनिया भर की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उनके साथ हर तरह की बद्तमीजी होती है। लेकिन, मेट्रो में उस दिन मुझे दूसरा अनुभव हुआ। एक अधेड़ उम्र दंपति नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन से चढ़े। सीटें भर गईं थीं। लेकिन, अधेड़ उम्र महिला ने दो लोगों को थोड़ा-थोड़ा समेटा और अपने लिए जगह बना ली। महिला निश्चिंत थी। दोनों पुरुष सिमटे बैठे थे। अक्षरधाम स्टेशन पर उनके पति महोदय को मेरे बगल सीट मिल गई। पति को सीट मिलते ही वो अधेड़ उम्र महिला बिजली की गति से मेरे और अपने पति के बीच में जगह बनाने के लिए उपस्थित थी। मुझसे अपना शारीरिक उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं हुआ। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। पति ने भी खड़े होकर मुझे बैठने को कहा। मैंने जवाब में खड़े रहना ही उचित समझा। पत्नी ने पति का हाथ पकड़ा और लगभग जबरदस्ती बैठा लिया।


बुजुर्ग

दो बुजुर्ग मेट्रो का दरवाजा खुलते ही मेट्रो में वृद्ध एवं विकलांगों के लिए लिखी वाली सीट की ओर दौड़े। एक ने कम उम्र व्यक्ति को उठाकर अपने लिए जगह बना ली। दूसरा बुजुर्ग ही बैठा था। लेकिन, दूसरे बुजुर्ग अतिसाहसी थे। वो दूसरी तरफ गए। और अनारक्षित सीट पर बैठे एक नौजवान को उठाकर अपने लिए सीट आरक्षित कर ली। जबरी।


किस्मत पर भरोसा
वो बुजुर्ग किसी से बात कर रहा था। फोन पर कह रहा था। व्हाट्सएप चेक किया। उधर से जो जवाब आया हो। बुजुर्ग ने कहा। अरे मैंने ग्रुप बना लिया है। रोज रात को एक संदेश भेज देता हूं। अच्छा लगे तो बहुत अच्छा। सिर्फ तीन लोग ही हैं उस ग्रुप में। और मैंने तो फेसबुक अकाउंट भी बना लिया है। मजा आ रहा है। जिंदगी है। उसमें सुबह भी होगी, दोपहर भी, शाम भी और रात भी। तो ऐसे ही जिंदगी चल रही है। मुझे रिटायर हुए 9 साल हुए। मैं अपनी जिंदगी शुरू हुए 9 साल ही मानता हूं। और जवानी में तो नहीं माना लेकिन, अब किस्मत पर भी थोड़ा बहुत भरोसा करने लगा हूं। और जोर से हा हा हा ...

Thursday, October 09, 2014

मिट्टी रो रही होगी

बच्चे मन के सच्चे होते हैं। ये बात हर कोई कहता रहता है। लेकिन, उसका अनुभव कभी-कभी गजब तरीके से होता है। अभी एक दिन खेल खेल में मुझे भी ये अनुभव हुआ। रविवार के दिन दोनों बेटियों को लेकर अपार्टमेंट के प्ले एरिया में था। झूला झूलते-झूलते बड़ी बेटी अमोलो ने पूछा। पापा ये मिट्टी क्यों दबा दी है। दरअसल हमारे अपार्टमेंट के प्ले एरिया में पता नहीं किस सोच से मिट्टी के ऊपर पूरी तरह से कंक्रीट डालकर पक्का कर दिया गया है। एक वजह हो सकती है कि झूलों और दूसरे खेलने वाले उपकरण मजबूती से जमे रहें। लेकिन, इससे हर समय ये खतरा बना रहता है कि बच्चे गिरे तो उनको चोट लग सकती है। अमोलो ने कहा- पापा मिट्टी रो रही होगी। क्यों मिट्टी को दबा दिया है। मैं जवाब नहीं दे सका। लेकिन, सच है कि हमारे अपने कर्मों से मिट्टी तो रो ही रही है। हमें विकास चाहिए। लेकिन, जाने-अनजाने सच्चे मन से अमोलो ने वो कह दिया जिसका जवाब खोजना असंभव है।

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...