Saturday, July 18, 2015

ये बड़े कलाकार हैं!

 बहस अच्छी होती है। और गजेंद्र चौहान को एफटीआईआई का चेयरमैन बनाने के सरकार के फैसले पर हो रही बहस के बाद तो ये और भी साबित हो गया है। गजेंद्र चौहान को चेयरमैन बनाना चाहिआ या नहीं बनाना चाहिए। छात्रों के, फिल्म जगत के बड़े-बड़े लोगों के इतने विरोध के बाद गजेंद्र चौहान को पद पर बने रहना चाहिए या नहीं। ये सारी बहस होती रहे। लेकिन, इस बहस में एक बात जो निकलकर आई है। उस पर बात होनी बड़ी जरूरी है। बार-बार जब भी देश के प्रतिष्ठित संस्थानों की बात होती है। तो, साथ में ये बात जरूर होती है कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में मैनेजर, डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के लिए सरकार कितनी रकम खर्च करती है। और क्या जनता के टैक्स की रकम में से खर्च की गई उस रकम से तैयार छात्र देश को कितना वापस दे पाते हैं। बहस ये भी होती है कि आईआईएम से निकले मैनेजर, देश के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों से पढ़कर निकले डॉक्टर या फिर देश की प्रतिष्ठित आईआईटी से निकले इंजीनियर देश का कितना भला करते हैं। और वो लोगों की गाढ़ी कमाई से उनकी शिक्षा को दी गई सब्सिडी का कितना हिस्सा लोगों की सेवा करके फिर से उनको लौटाते हैं। बहस बार-बार ये होती रहती है कि आईआईएम से पढ़कर करोड़ो की सैलरी लेकर छात्र एमएनसी कंपनी की सेवा करता है या फिर विदेशों में जाकर नौकरी करते हैं। डॉक्टरों पर आरोप लगता है कि वो लोगों से महंगी फीस लेते हैं। महंगी दवाएं लिखते हैं। आखिर ये सब बहस क्यों होती। दरअसल ये सब बहस इसी आधार पर होती है कि वो जो पढ़ाई करके निकलते हैं, उस पढ़ाई के लिए सरकार जितनी बड़ी रकम खर्च करती है। वो, टैक्स की रकम का बड़ा हिस्सा होती है।
उदाहरण के लिए आईआईटी में इंजीनियरिंग पढ़ने वाले एक छात्र पर सरकार सालाना करीब साढ़े तीन लाख रुपये खर्च करती है। ये उस छात्र की दी गई फीस के ऊपर खर्च होने वाली रकम है। ऐसे ही एक छात्र जब डॉक्टर बन रहा होता है तो, सरकार एक छात्र पर सालाना छे लाख रुपये से ज्यादा खर्च करती है। जबकि, देश के सबसे प्रतिष्ठित प्रबंध संस्थान आईआईएम से पढ़कर निकलने वाले एक छात्र को बढ़िया प्रबंधक बनाने के लिए सरकार सालाना पांच लाख रुपये से ज्यादा खर्च करती है। इसीलिए ये बहस होती है कि आखिर देश के इन सबसे बेहतरनी संस्थानों से निकलने वाले छात्र देश के निर्माण में किस तरह से योगदान कर रहे हैं। बहस ये भी होती है कि आखिर अगर यहां से पढ़कर निकलने के बाद ये निजी संपत्ति बढ़ाने के ही काम में लग जाते हैं तो, क्या इतनी रकम इनके ऊपर खर्च करना जायज है। लेकिन, अगर इसी बहस को आगे बढ़ाते हुए ये पूछा जाए कि देश के सबसे प्रतिष्ठित कलाकार तैयार करने वाले संस्थान एफटीआईआई से निकले छात्रों का देश निर्माण में क्या योगदान है। इस सवाल पर शायद बहुतायत लोग सीना तानकर खड़े हो जाएंगे कि ये कैसी बहस है। लोकतंत्र में सरकार की जिम्मेदारी है कि कला को, कलाकार को पूरा सम्मान दिया जाए। लेकिन, यहां कलाकारों को, कला को सम्मान देने, उसे बढ़ाने पर तो कोई बहस मैं कर ही नहीं रहा। मैं तो बहस कर रहा हूं कि एफटीआईआई पुणे से निकले कलाकारों का देश के सिनेमा को आगे बढ़ाने में कितना योगदान है। अगर बड़े-बड़े कलाकारों के नाम गिनाकर इसका जवाब आ रहा है तो, किसी भी आईआईएम, आईआईटी या मेडिकल कॉलेज से निकले प्रोफेशनल के बड़े-बड़े नाम गिनाए जो सकते हैं। फिर ये बहस क्यों हो। सवाल ये भी है कि मैं आखिर एफटीआईआई पर ही ये बहस क्यों कर रहा हूं। दरअसल एफटीआईआई पर ये बहस में इसलिए कर रहा हूं कि देश प्रतिष्ठित आईआईएम, आईआईटी या फिर मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों से कहीं ज्यादा खर्च सरकार कलाकार तैयार करने में कर रही है। और ये खर्च भी जनता की गाढ़ी कमाई से ही सरकार कर पा रही है। चौंका देने वाला आंकड़ा ये है कि एफटीआईआई में पढ़ने वाले एक छात्र पर सरकार सालाना बारह लाख रुपये खर्च करती है। एफटीआईआई में साढ़े तीन सौ छात्र पढ़ते हैं। अब इस खर्च की तुलना अगर आईआईटी के छात्र से करें तो, ये करीब तीन गुना ज्यादा होता है। आईआईएम के छात्र पर सरकार के खर्च से दोगुने से भी ज्यादा और मेडिकल छात्र पर सालाना हो रहे खर्च से ठीक दोगुना है।
एफटीआईआई के छात्रों पर हो रहे खर्च की इस बहस में ये कुछ और तथ्य जोड़ने पर तो ये और भी रोचक हो जाती है। आईआईएम, आईआईटी या फिर किसी मेडिकल कॉलेज में हड़ताल की खबर कब आती है। क्योंकि, वहां के छात्र शायद ही हड़ताल करने की सोचते भी हों। लेकिन, एफटीआईआई में तैयार हो रहा हर कलाकार जैसे हड़ताल के लिए ही तैयार हो रहा होता है। गजेंद्र चौहान की काबिलियत की चर्चा इस बहस के केंद्र में नहीं है। इसलिए गजेंद्र की नियुक्ति के खिलाफ हो रही एफटीआईआई के छात्रों की इस समय की हड़ताल भी बहस में नहीं है। लेकिन, एफटीआईआई के पचास सालों में उन्तालीस से ज्यादा बार हड़ताल हो चुकी है। इसलिए ये बहस जरूरी हो जाती है कि आखिर एफटीआईआई क्या तैयार कर रहा है और किसके लिए तैयार कर रहा है।

No comments:

Post a Comment

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...