Monday, January 30, 2017

मजबूर मायावती या मुख्तार अंसारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति हर बीतते दिन के साथ बदल रही है। जिस मुख्तार अंसारी की पारिवारिक पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की घटना ने मुलायम सिंह के बाद सपा के सबसे ताकतवर नेता शिवपाल यादव को एक विधानसभा का नेता बनाकर रख दिया, अब वही कौमी एकता दल मायावती की बीएसपी में समाहित हो गई है। एक दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद अपराधी नेता मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल को बीएसपी का हिस्सा बनाते मायावती ने कहाकि मुख्तार के खिलाफ कोई अपराध साबित नहीं हुआ है। अगर अपराध साबित हुआ तो वो कोई कार्रवाई करने से हिचकेंगी नहीं। कौमी एकता दल के विलय के बदले में अंसारी परिवार को तीन सीटें मायावती ने दे दीं। मऊ सदर विधानसभा सीट से मुख्तार बीएसपी प्रत्याशी होंगे। घोसी से मुख्तार का बेटा बीएसपी से लड़ेगा और बगल के जिले गाजीपुर को मोहम्मदाबाद सीट से मुख्तार के सिबगतुल्लाह अंसारी चुनाव लड़ेंगे। 1996 में पहली बार बीएसपी टिकट पर जीतने के बाद जेल में रहने के बावजूद मुख्तार लगातार मऊ सदर से चुनाव जीत रहे हैं। मोहम्मदाबाद सीट पर भी अंसारी परिवार का ही कब्जा है। यहीं से कृष्णानंद राय की पत्नी बीजेपी से चुनाव लड़ रही हैं। मुख्तार अंसारी कृष्णानंद राय की हत्या के आरोपों में ही लम्बे समय से जेल में बंद हैं। हत्या की वजह भी 2002 का विधानसभा चुनाव माना जाता है। जब कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को विधानसभा चुनाव में हरा दिया था। उसके बाद ही कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी।
मायावती के मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय के बदले अपने घोषित तीन प्रत्याशियों को हटाने को इस तरह से देखा जा सकता है कि मायावती किसी भी हाल में इस चुनाव में मुसलमानों को अपने नजदीक लाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती हैं। इस लिहाज से मायावती के लिए अंसारी परिवार की पार्टी की बीएसपी में शामिल होना सबसे बेहतर विकल्प दिख रहा है। वैसे भी मुख्तार अंसारी पुराने बसपाई हैं। कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने की छवि रखने वाली मायावती ने ही सबसे पहले मुख्तार अंसारी को 1996 में मऊ सदर से विधानसभा पहुंचने का रास्ता दिखाया था। हालांकि, उसके बाद बीएसपी से बाहर रहते भी मुख्तार अंसारी मऊ सदर से लगातार विधायक चुने जाते रहे। जेल में रहकर भी। मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से 1985 से लगातार चुने जाते हैं। सिवाय 2002 और 2005 में हुए उपचुनाव के। 2002 में बीजेपी के कृष्णानंद राय और 2006 के उपचुनाव में कृष्णानंद की हत्या के बाद उनकी पत्नी अलका राय इस सीट को जीतने में सफल रहीं। उसके बाद अफजाल लोकसभा पहुंचे और मुख्तार के दूसरे भाई सिबगतुल्लाह अंसारी इस सीट से विधायक हैं। अंसारी परिवार को दी गई तीनों सीटों का बीएसपी के खाते में जाना लगभग तय है। सीधे तौर पर मायावती को 3 सीटों का फायदा है। दूसरी बड़ी बात ये कि अंसारी परिवार की कौमी एकता दल ने 2012 में 43 विधानसभा में चुनाव लड़ा और 2 सीटें जीतीं। लेकिन, मत प्रतिशत के लिहाज से मऊ, गाजीपुर और बलिया में करीब 15% मत हथिया लिए। इन तीनों जिलों में कुल 15 सीटें हैं। यहां मायावती की बहुजन समाज पार्टी को मुख्तार परिवार के आने से काफी ताकत मिलेगी। 2005 के बाद कृष्णानंद राय की हत्या के बाद तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए न्याय यात्रा निकाली थी। 2005 में ही मऊ में दंगे हुए थे और दंगों के बाद लगे कर्फ्यू के दौरान मुख्तार अंसारी की खुली जिप्सी में अपने निजी असलहाधारी अंगरक्षकों और पुलिस के साथ की तस्वीरें मीडिया में खूब चर्चा में आई थी। इन सब वजहों से मायावती के लिए मुख्तार अंसारी जेल में बंद होने के बाद भी मुसलमानों के नजदीक जाने का बड़ा जरिया दिख रही हैं।

मायावती की मजबूरी साफ दिखती है कि मुसलमानों का मत पाने के लिए कुछ भी करेंगी। लेकिन मुख्तार अंसारी भी कम मजबूर नहीं हैं। मुख्तार अंसारी के लिए ये राजनीतिक जीवन-मरण का चुनाव है। करीब 12 सालों से मुख्तार जेल में बंद हैं। और 2012 के चुनाव में भले ही कौमी एकता दल ने 2 सीटें जीत लीं। लेकिन, खुद मुख्तार मऊ सीट पर मतों के मामलों में पिछड़ते दिख रहे हैं। 1996 में मुख्तार ने मऊ विधानसभा सीट पर बीएसपी के टिकट पर 45.85% मत हासिल किए। 2002 में निर्दलीय मुख्तार को पहले से ज्यादा 46.06% मत मिले और 2007 में मुख्तार की लोकप्रियता निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ही और बढ़ गई। मुख्तार को 46.78% मत मिले। लेकिन, 2012 मुख्तार के लिए खतरों की घंटी साबित हुए। मुख्तार अंसारी विधायक बन गए। लेकिन, मत प्रतिशत जबर्दस्त तरीके से घटकर 31.24% रह गया। बीएसपी ने इस सीट पर मऊ डिग्री कॉलेज के महामंत्री रहे मनोज राय को टिकट दिया था। मनोज राय का मऊ सीट पर मजबूत आधार है। समाजवादी पार्टी ने यहां अलताफ अंसारी को टिकट दिया है। ऐसे में बिना किसी पार्टी के मुख्तार अंसारी को अपनी सीट जाती दिख रही थी। इसीलिए मुख्तार अंसारी ने पहले समाजवादी पार्टी में अपनी पार्टी की विलय की कोशिश की और असफलता मिलने पर हाथी की सवारी कर ली। कुल मिलाकर कौमी एकता दल के बीएसपी में विलय बीएसपी के तीन सीटों पर लगभग पक्की जीत की कहानी नहीं है। ये मुसलमान, मायावती और मुख्तार का ऐसा राजनीतिक मेल है, जो कई संभावनाओं और आशंकाओं की जमीन तैयार कर रहा है। 

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